एस्ट्रोसेज के दो मिनट के ज्योतिष कोर्स में आपका स्वागत है। अक्सर लोग यह कहते हैं कि इतने सारे राजयोग कुण्डली में होने के बाद भी मनुष्य इतना परेशान क्यों है? महापुरुष और गज केसरी योग होने के बावजूद मनुष्य को खाने के लाले क्यों पड रहें हैं? बहुत सारे ज्योतिषी राजयोग भंग के नियमों के बारे में नहीं जानते और फिर कहते हैं कि राजयोग कुछ नहीं होते। आज मैं उन महत्वपूर्ण नियमों के बारे में बताता हूं जिससे पता चलता है कि कब राजयोग का फल नहीं मिलेगा। राजयोग भंग के ये नियम मैनें वर्षों के अनुभव से जाने हैं। ये बहुत बहुत महत्वपूर्ण हैं इसलिए इन्हें ध्यान से सुनों।
राजयोग के फल न मिलने का मुख्य कारण होता है राजयोग बनाने वाले ग्रह का कमजोर होना। ग्रह कि ताकत जानने के लिए मैंनें 15 नियम पहले बताये थे। उसके अलावा पांच अन्य कारणों से राजयोग भंग होता है उसे आज बताता हूं।
पहला राशि स्वामी ग्रह यानि डिपोजिटर। अगर राजयोग बनाने वाला ग्रह जिस राशि में बैठा है उसका राशि स्वामी बहुत कमजोर है। इसके बारे में मैनें पिछले एपीसोड राजयोग रहस्य में विस्तार से बताया है।
दूसरा दृष्टि यानि कि अगर राजयोग बनाने वाला ग्रह पाप ग्रह खासकर मंगल या शनि की से देखा जा रहा है।
तीसरा संधि यानि कि राजयोग बनाने वाला ग्रह दो राशियों कि संधि पर है। संधि यानि वह जगह जहां एक राशि खत्म होती है और दूसरी शुरु। अगर राशि और नक्षत्र दोनों की संधि हो यानि कि ग्रह 120 डिग्री, 240 डिग्री, या 360 डिग्री के पास हो तो उसे गण्डान्त भी कहते हैं। ऐसी स्थिति में ग्रह बहुत ही कमजोर हो जाता है और राजयोग का फल नहीं दे सकता।
चौथा नवमांश बल। खासकर नवमांश में ग्रह का नीच होना।
पांचवा कुण्डली कि शक्ति। इसके बारे में "सफलता और समृद्धि के योग" वाले एपीसोड में बता चुका हूं। संक्षेप में अगर लग्न और चंद्र बहुत कमजोर होंगे तो किसी राजयोग का कोई फल नहीं मिल सकता।
आशा है इस एपीसोड से आप ज्योतिष के कई रहस्यों को जान गए होंगे।
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राजयोग के फल न मिलने का मुख्य कारण होता है राजयोग बनाने वाले ग्रह का कमजोर होना। ग्रह कि ताकत जानने के लिए मैंनें 15 नियम पहले बताये थे। उसके अलावा पांच अन्य कारणों से राजयोग भंग होता है उसे आज बताता हूं।
पहला राशि स्वामी ग्रह यानि डिपोजिटर। अगर राजयोग बनाने वाला ग्रह जिस राशि में बैठा है उसका राशि स्वामी बहुत कमजोर है। इसके बारे में मैनें पिछले एपीसोड राजयोग रहस्य में विस्तार से बताया है।
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तीसरा संधि यानि कि राजयोग बनाने वाला ग्रह दो राशियों कि संधि पर है। संधि यानि वह जगह जहां एक राशि खत्म होती है और दूसरी शुरु। अगर राशि और नक्षत्र दोनों की संधि हो यानि कि ग्रह 120 डिग्री, 240 डिग्री, या 360 डिग्री के पास हो तो उसे गण्डान्त भी कहते हैं। ऐसी स्थिति में ग्रह बहुत ही कमजोर हो जाता है और राजयोग का फल नहीं दे सकता।
चौथा नवमांश बल। खासकर नवमांश में ग्रह का नीच होना।
पांचवा कुण्डली कि शक्ति। इसके बारे में "सफलता और समृद्धि के योग" वाले एपीसोड में बता चुका हूं। संक्षेप में अगर लग्न और चंद्र बहुत कमजोर होंगे तो किसी राजयोग का कोई फल नहीं मिल सकता।
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