Wealth Yoga, Poverty Yoga & Vipreet Rajyoga (धन योग और दरिद्र योग) : 2 Minute Astrology (Part- 15)

पिछली बार मैनें पाराशरी राजयोग के बारे में बताया जो कि केन्‍द्र और त्रिकोण के संबंध से बनता है। उसी तरह दो भावों के संबंध से कई अन्‍य योग भी बनते हैं और उनमें से कुछ योग बहुत महत्‍वपूर्ण हैं जैसे धनयोग, दरिद्र योग और विपरीत राजयोग और उनके बारे में बताता हूं।



सबसे पहले जानते हैं धन योग को। एक, दो, पांच, नौ और ग्‍यारह धन प्रदायक भाव हैं। अगर इनके स्‍वामियों में युति, दृष्टि या परिवर्तन सम्‍बन्‍ध बनता है तो इस सम्‍बन्‍ध को धनयोग कहा जाता है। जैसा कि पहले बताया, संबंध मतलब युति, दृष्टि और परिवर्तन। जैसा कि नाम से पता चलता है, धनयोग मतलब पैसा, धन और सं‍पत्ति के योग। जितने ज्‍यादा धनयोग आपकी कुंडली में होंगे और धनयोग बनाने वाले ग्रह जितने ताकतवर होंगे उतना ही व्‍यक्ति धनी होगा।

दरिद्र योग
अगर किसी भी भाव का युति, दृष्टि या परिवर्तन सम्‍बन्‍ध तीन, छ:, आठ, बारह भाव से हो जाता है तो उस भाव के कारकत्‍व नष्‍ट हो जाते हैं। अगर तीन, छ:, आठ, बारह का यह सम्‍बन्‍ध धन प्रदायक भाव (एक, दो, पांच, नौ और ग्‍यारह) से हो जाता है तो यह दरिद्र योग कहलाता है।

तीसरा और आखरी योग जिसके बारे में मैं बताने जा रहा हूं वह है। हम जानते हैं कि 3, 6, 8, 12 के स्‍वामी ग्रहों का संबध अगर 1, 2, 5 ,9, 11 भाव के स्‍वामियों से हो जाता है तो दरिद्र योग बनता है परन्‍तु अगर 3, 6, 8, 12 के स्‍वामियों का संबध आपस में हो जाता हैं तो यह विपरीत राजयोग बनाता है जोकि शुभफल दायक है। यह योग अचानक ही राजयोग के समान शुभ फल देने वाला है। मेरे अनुभव में अगर इस संबध में नैसर्गिक पाप ग्रह यानि कि सूर्य, मंगल और शनि मिल जाते हैं तो यह योग विशेष शुभ्‍ फल देता है।

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